गुरुकृपांजन पायो मेरे भाई, राम बिना कछु मानत नाही ॥अंदर रामा बाहर रामा। सपने में देखत सीतारामा॥जागत रामा सोवत रामा। जहा देखे वहां पूरनकामा॥एका जनर्दनी अनुभव नीका। जहां देखे वहां राम सरीखा॥
No comments:
Post a Comment